Powered by Blogger.

चिड़िया की उड़ान / अशोक चक्रधर

चिड़िया तू जो मगन, धरा मगन, गगन मगन,
फैला ले पंख ज़रा, उड़ तो सही, बोली पवन।
अब जब हौसले से, घोंसले से आई निकल,
चल बड़ी दूर, बहुत दूर, जहां तेरे सजन।

वृक्ष की डाल दिखें
जंगल-ताल दिखें
खेतों में झूम रही
धान की बाल दिखें
गाँव-देहात दिखें, रात दिखे, प्रात दिखे,
खुल कर घूम यहां, यहां नहीं घर की घुटन।
चिड़िया तू जो मगन....

राह से राह जुड़ी
पहली ही बार उड़ी
भूल गई गैल-गली
जाने किस ओर मुड़ी

मुड़ गई जाने किधर, गई जिधर, देखा उधर,
देखा वहां खोल नयन-सुमन-सुमन, खिलता चमन।
चिड़िया तू जो मगन...

कोई पहचान नहीं
पथ का गुमान नहीं
मील के नहीं पत्थर
पांन के निशान नहीं
ना कोई चिंता फ़िक़र, डगर-डगर, जगर मगर,
पंख ले जाएं उसे बिना किए कोई जतन।

चिड़िया तू जो मगन, धरा मगन, गगन मगन,
फैला ले पंख ज़रा, उड़ तो सही, बोली पवन।
अब जब हौसले से, घोंसले से आई निकल,
चल बड़ी दूर, बहुत दूर, जहां तेरे सजन।

No comments:

Pages

all

Search This Blog

Blog Archive

Most Popular