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सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर / निदा फ़ाज़ली

सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक, भूखा रहे फ़क़ीर

सीधा-सादा डाकिया, जादू करे महान
एक ही थैले में भरे, आँसू और मुस्कान

जीवन के दिन-रैन का, कैसे लगे हिसाब
दीमक के घर बैठकर, लेखक लिखे किताब

मुझ जैसा इक आदमी मेरा ही हमनाम़
उल्टा-सीधा वो चले, मुझे करे बदनाम

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