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मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे / दुष्यंत कुमार

मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे

मेरे बाद तुम्हें ये मेरी याद दिलाने आएँगे


हौले—हौले पाँव हिलाओ,जल सोया है छेड़ो मत

हम सब अपने—अपने दीपक यहीं सिराने आएँगे


थोड़ी आँच बची रहने दो, थोड़ा धुआँ निकलने दो

कल देखोगी कई मुसाफ़िर इसी बहाने आएँगे


उनको क्या मालूम विरूपित इस सिकता पर क्या बीती

वे आये तो यहाँ शंख-सीपियाँ उठाने आएँगे


रह—रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी

आगे और बढ़ें तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे


मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता

हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे


हम क्या बोलें इस आँधी में कई घरौंदे टूट गए

इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जाएँगे.

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