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एक अचूक नुस्खा - राजकिशोर

कल अचानक हाजी साहब से मुलाकात हो गई। वे मेरे पुराने दोस्तों में हैं। पर उनसे कब मुलाकात होगी, यह तय नहीं रहता। देश भर में घूमते रहते हैं। कभी कहीं से पोस्टकार्ड भेज देते हैं, कभी कहीं से फोन कर देते हैं। पिछली बार उनका फोन आया था, तो वे नंदीग्राम में थे, जहाँ पंचायत चुनाव चल रहे थे। वहाँ के हाल बताते हुए फोन पर ही रो पड़े थे। बोले, 'इस जुल्म की सजा सीपीएम को जरूर मिलेगी।' बाद में चुनाव परिणामों ने हाजी साहब के मुआयने की पुष्टि की।

बातों-बातों में महँगाई को लेकर चर्चा चल पड़ी। हाजी साहब हँसने लगे। बोले, इसका इलाज तो चुटकियों में हो सकता है। लेकिन कोई भी सरकार इस मामले में संजीदा नहीं है। इसलिए कुछ बोलना बेकार है।

मैंने कहा, मजाक की बात नहीं है। आप वही कहेंगे न जो पंडित नेहरू कहा करते थे - मुनाफेबाजों को सबसे नजदीक के लैंप पोस्ट से लटका दो।

हाजी साहब - तुम जानते हो, मैं किसी की जान लेने के खिलाफ हूँ। जान दे सकता हूँ, पर ले नहीं सकता।

मैंने जानना चाहा - तो क्या आपका फॉर्मूला वह है, जिसकी वकालत एक जमाने में बंगाल के कम्युनिस्ट किया करते थे? उनकी टोलियाँ मुहल्ले-मुहल्ले में घूमते हुए नारा लगाती थीं - जो बदमाश और भ्रष्ट हैं, उनकी 'गन धोलाई करते होबे, करते होबे।' गन धोलाई माने सार्वजनिक पिटाई।

हाजी साहब - मेरे लिए मारना-पीटना हत्या करने की ही निचली सीढ़ियाँ हैं।

- तो आपका सुझाव क्या है? कीमतों को कैसे थामा जा सकता है?

हाजी साहब - किसी न किसी ने कीमतों को जरूर थामा हुआ है। नहीं तो वे ऊपर-नीचे कैसे होती रहती हैं? कीमतें तो बेजान चीजें हैं। वे खुद कैसे चढ़-उतर सकती हैं?

- हाजी साहब, पहेलियाँ न बुझाइए। करोड़ों लोगों की जिंदगी का सवाल है।

हाजी साहब को हलका-सा ताव आ गया। बोले - तो सुनो। मेरे फार्मूले से कीमतें गिरें या न गिरें, पर यह तो मालूम हो ही जाएगा कि किसी चीज की असली कीमत क्या है। उसके बाद कीमतों को काबू में करना आसान हो जाएगा।

मैंने पूछा - किसी चीज की असली कीमत क्या है?

हाजी साहब - उसकी लागत के साथ उचित पारिश्रमिक या उचित मुनाफा जोड़ दो, तो असली कीमत सामने आ जाएगी। कोई चीज उससे ज्यादा पर नहीं बिकनी चाहिए।

तो क्या ऐसा नहीं हो रहा है? - मेरा अज्ञान उबल पड़ा।

हाजी साहब - नहीं, आज न तो सरकार को मालूम है, न जनता को कि किसी चीज की असली कीमत क्या है। मसलन दस रुपए का जो साबुन बिक रहा है या चार लाख रुपए की जो कार बिक रही है, उसकी असली लागत क्या है, यह सिर्फ साबुन या कार बनानेवाला या बेचनेवाला ही जानता है, और कोई नहीं।

- तो होना क्या चाहिए?

- होना यह चाहिए कि हर उद्योगपति और व्यापारी के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए कि वह अपने सामान की लागत और अपने मुनाफे की रकम, दोनों की सूचना देते रहे। सरकार इस पर विचार करेगी कि वह लागत और वह मुनाफा जायज है या नहीं। अगर लागत को बढ़ा कर बताया गया है, तो उसे नीचे ले आएगी। अगर मुनाफा ज्यादा लिया जा रहा है, तो उसे भी कम करेगी। इस तरह हर चीज अपनी असली कीमत पर बिकेगी। जब लागत बढ़ेगी, तभी कीमत को बढ़ने दिया जाएगा। जो उचित कीमत से अधिक वसूलेगा, उसे जेल में रखा जाएगा। वहाँ उसे मुफ्त में नहीं रखा जाएगा, बल्कि उससे काम कराया जाएगा तब खाना-कपड़ा दिया जाएगा।

- और किसी को उसकी चीजों की वाजिब कीमत न मिल रही हो, तब? जैसे, किसान कहते हैं कि उन्हें अनाज का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है। इसीलिए, किसानी घाटे का सौदा हो गई है।

- इसका भी इलाज है। अगर किसी को कोई चीज पैदा करने में घाटा हो रहा है, तो उससे कहा जाएगा, वह कोई और काम करे। जिस चीज की पैदावार राष्ट्रीय या सामाजिक हित में जरूरी है, उसकी उचित कीमत दिलाने की जिम्मेदारी सरकार की रहेगी। अगर व्यापारी पूरी कीमत देने से मना करते हैं, तो सरकार उसे उचित कीमत पर खरीद लेगी और जनता को बेचेगी। समर्थन मूल्य जैसी अवधारणा तुरंत खत्म हो जानी चाहिए। क्यों भइए, किसान भिखारी हैं क्या, जो उन्हें समर्थन मूल्य देते हो? गेहूँ, कपास, चावल, चीनी वगैरह का उचित मूल्य घोषित करो और चारों ओर मुनादी पिटवा दो कि जितना भी माल इस कीमत पर बिकने से रह जाएगा, उसे सरकार खरीद लेगी और कीमत तुरंत चुकाएगी। तब देखना, कितने किसान आत्महत्या करते हैं।

मैं सोचने लगा। बोला, हाजी साहब, बात तो आपकी सोलह आने जँचती है। पर सरकार ऐसा करेगी भी?

हाजी साहब - इसीलिए तो मैं इस बारे में कुछ बोलता नहीं। हाँ, एक और संभावना यह है कि जो काम सरकार नहीं करना चाहती, उसे जनता करके दिखाए। जन स्तर पर कीमत समितियाँ बनें और उचित कीमत की व्यवस्था को लागू करें। सरकार इसका विरोध नहीं कर सकेगी, क्योंकि जनता बड़े पैमाने पर इस अभियान का साथ देगी।

- तो हाजी साहब, आप ही यह अभियान शुरू क्यों नहीं करते? पुण्य का काम है।

हाजी साहब खिलखिला पड़े - अपन आनंदमार्गी हैं। अपन से विमर्श के सिवाय कुछ नहीं होगा। तुम कुछ नौजवानों से बात करो।

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