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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ / फ़राज़

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत[1] का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम[2] न सही फिर भी कभी तो
रस्मे-रहे-दुनिया[3] ही निभाने के लिए आ

किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरिया[4] से भी महरूम [5]
ऐ राहत-ऐ-जाँ[6] मुझको रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ऐ-ख़ुशफ़हम[7] को तुझ से है उम्मीदें
ये आखिरी शम्अ भी बुझाने के लिए आ


शब्दार्थ
1 प्रेम के गर्व 2 प्रेम व्यवहार 3 सांसारिक शिष्टाचार 4 रोने के स्वाद 5 वंचित 6प्राणाधार
7किसी की ओर से अच्छा विचार रखने वाला मन

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