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दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला- अकबर इलाहाबादी

दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला

बुत के बंदे मिले अल्लाह का बंदा न मिला

बज़्म-ए-याराँ से फिरी बाद-ए-बहारी मायूस

एक सर भी उसे आमादा-ए-सौदा न मिला

गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आए बहुत इत्र-फ़रोश

तालिब-ए-ज़मज़मा-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला

वाह क्या राह दिखाई है हमें मुर्शिद ने

कर दिया काबे को गुम और कलीसा न मिला

रंग चेहरे का तो कॉलेज ने भी रक्खा क़ाइम

रंग-ए-बातिन में मगर बाप से बेटा न मिला

सय्यद उट्ठे जो गज़ट ले के तो लाखों लाए

शैख़ क़ुरआन दिखाते फिरे पैसा न मिला

होशयारों में तो इक इक से सिवा हैं 'अकबर'

मुझ को दीवानों में लेकिन कोई तुझ सा न मिला

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