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धूप में निकलो / निदा फ़ाज़ली

धूप में निकलो घटाओं में

नहाकर देखो

ज़िन्दगी क्या है, किताबों को

हटाकर देखो |


सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया

नहीं देखी जाती

दिल की धड़कन को भी बीनाई*

बनाकर देखो |


पत्थरों में भी ज़बाँ होती है

दिल होते हैं

अपने घर के दरो-दीवार

सजाकर देखो |


वो सितारा है चमकने दो

यूँ ही आँखों में

क्या ज़रूरी है उसे जिस्म

बनाकर देखो |


फ़ासला नज़रों का धोका भी

तो हो सकता है

चाँद जब चमके तो ज़रा हाथ

बढाकर देखो |

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