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आँधी और आग / दुष्यंत कुमार

अब तक ग्रह कुछ बिगड़े बिगड़े से थे इस मंगल तारे पर
नई सुबह की नई रोशनी हावी होगी अँधियारे पर
उलझ गया था कहीं हवा का आँचल अब जो छूट गया है
एक परत से ज्यादा राख़ नहीं है युग के अंगारे पर।

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