Powered by Blogger.

मैं और तू / फ़राज़

रोज़ जब धूप पहाड़ों से उतरने लगती
कोई घटता हुआ बढ़ता हुआ बेकल[1]साया
एक दीवार से कहता कि मेरे साथ चलो


और ज़ंजीरे-रफ़ाक़त[2]से गुरेज़ाँ[3]दीवार
अपने पिंदार[4]के नश्शे में सदा ऐस्तादा[5]
ख़्वाहिशे-हमदमे-देरीना[6]प’ हँस देती थी


कौन दीवार किसी साए के हमराह[7]चली
कौन दीवार हमेशा मगर ऐस्त्तादा रही
वक़्त दीवार का साथी है न साए का रफ़ीक़[8]


और अब संगो-गुलो-ख़िश्त[9]के मल्बे के तले
उसी दीवार का पिंदार है रेज़ा -रेज़ा[10]
धूप निकली है मगर जाने कहाँ है साया

शब्दार्थ
1 बेचैन 2मित्रता की बेड़ी 3 भागती हुई 4 अभिमान, दर्प 5सीधी खड़ी हुई, अकड़ी हुई
6पुराने मित्र की इच्छा 7 साथ-साथ 8 मित्र, प्रिय,प्यारा 9पत्थर फूल तथा ईंट 10 टुकड़े-टुकड़े

No comments:

Pages

all

Search This Blog

Blog Archive

Most Popular