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15. मौसम

मौसम में कैसा बदलाव आ गया है।
शीत के छींटे फेंकता है
मेरे नाम ।

हर शाम
एक स्वच्छ दर्पण-सा व्योम
टुकुर-टुकुर ताके ही जाता है।

वातावरण बड़ी निराश गति से
चारों ओर रेंगता है,
कवि कहकर मुझको चिढ़ाता है ।

सच-
कैसा असहाय है ।
कितना बूढा हो गया है तुम्हारा कवि !
बदले हुए मौसम के अनुरूप
उससे
वेश तक नहीं बदला जाता है ।...

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