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17. युद्ध और युद्ध-विराम के बीच

(संदर्भ 1965 का युद्ध)

मामूली बात नहीं है
कि इन अगन भट्टियों के दहानों पर बैठे हुए
हम, तुमसे फूलों और बहारों की बात कर लेते हैं,
अपनी बाँहें आकाश की ओर उठाकर
बच्चों की तरह चिल्ला उठते हैं कभी-कभी
टैंकों और विमानों के कोलाहलों को
जीवन का नारा लगाकर
एक नए स्वर से भर देते हैं।

मामूली बात नहीं है
कि जब ज़मीन और आसमान पर
मौत धड़धड़ाती हो,
एक कोमल-सा तार पकड़े हुए
आप
अपनी आस्था आबाद रक्खें,
विषाक्त विस्फोटों के धुएँ में
खुद अपने ऊपर नेपाम बम चलाते हुए
गाँधी ओर गौतम का नाम याद रक्खें ।
शब्दों की छोटी-छोटी
तोपें लिए हुए
बम बरसाने वाले जहाजों को मोड़ लें,
भूखी साँसों को राष्ट्रीयता के चिथड़े पहनाए
अभावों का शिरस्त्राण बाँधे
चारों ओर फैली विषेली गैस ओढ़ लें,
चाहे तलुए झुलसकर काले पड़ जाएँ
आँखों में सपनों की कीलें गड़ जाएँ
पेट पीठ से सट जाए
पूरे व्यक्तित्व का सिंहासन पलट जाए ।
xxx
अजीब बात है
कि नज़रों को घायल कर देते हैं दृश्य
जिधर पलकें उठाते हैं,
वातावरण घृणा मुस्कराता है
जिसमें भी जाते हैं,
आकाश की मुट्ठी से फिसलती हुई
बेबसी फैलती-फूटती है
फिर भी हम नहीं छटपटाते हैं
गाते हैं एक ऐसा गीत
जिसकी टेक अहिंसा पर टूटती है ।

मामूली बात नहीं है दोस्तो !
कि आज जब दुनिया शक्ति के मसीहों को पूजती है
सोग घरों में भी तलवारों पर मचल रहे हैं,
हम
युद्धस्थल में
एक मुर्दे को शांति का पैग़ंबर समझकर
उठाए चल रहे हैं।
xxx
लोग कहते हैं कि अमुक बुरा है या भला है।
लोग ये भी कहते हैं कि आत्मवंचना में
जीवन जीना कला है।
हम कुछ भी नहीं कहते।
बार-बार शांति के धोखे में विवेक पी जाते हैं।
संवेदनहीन राष्ट्रों को
सदियों से
आत्मा पर बने हुए घाव दिखलाते हैं-
यानी
बहुत हुआ तो
आत्मलीन विश्व से निवेदन करते हैं-ओर
उसी नदी में डूब जाते हैं
जिससे उबरते हैं।
xxx
मामूली बात नहीं है दोस्तो
कि हम न चीखें
न कराहें;
क्योंकि यही रास्ता शायद
हमारी नियति है,
जो यहाँ से शुरू हो
और यहीं लौट आए ।
शायद यह तटस्थता है।
शायद यह अहिंसा या शांति या सहअस्तित्व है।
यह कुछ ज़रूर है;
इसी के लिए हमने
टैंकों और बमों को शहरों पर सहा है,
प्राण गँवाए हैं ।

कच्छ में स्वाभिमान
काश्मीर में फूलों की हँसी
और छम्ब में मातृभूमि का अंग-भंग हो जाने दिया है
चाकू और छुरे खाए हैं।
...मामूली बात नहीं है दोस्तो !

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