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23. वर्षा

दिन भर वर्षा हुई
कल न उजाला दिखा
अकेला रहा
तुम्हें ताकता अपलक |

आती रही याद :
इंद्रधनुषों की वे सतरंगी छवियाँ
खिंची रहीं जो
मानस-पट पर भरसक |

कलम हाथ में लेकर
बूँदों से बचने की चेष्टा की--
इधर-उधर को भागा
भींग गया पर मस्तक :

हाय ! भाग्य की रेखा,
मुझ पर ही आकाश अकारण बरसा
पर तुम...
बूँदें गई न शायद तुम तक |

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