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25. एक जन्म दिन पर

एक घनिष्ठ-सा दिन
आज
एक अजनबी की तरह
पास से निकल गया।

एक और सोते-सा सूख गया !
टूट गया एक और बाजू-सा !
एक घनिष्ठ-सा दिन-
जिसे मैं चुंबनों से रचकर
और कई सार्थक प्रसंगों तक ले जाकर
तुम तक आ सकता था !
मैं जिसको होंठों पर रखकर गा सकता था
स्वरों की पकड़ में नहीं आया
गरम-गरम बालू-सा फिसल गया !

मटमैली चादर-सी
बिछी रही सड़कें
और खाली पलंग-सा शहर !
मेरी आँखों में-देखते-देखते,
बिना किसी आहट के,
पिछली दशाब्दी का
कलेण्डर बदल गया।

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