डॉ. मोतीलाल जोतवाणी के हाइकु
जाड़े की धुंध
तो भी रोशनी बाकी
इन दिलों में।
तारे सितारे
ठौर-ठौर पर ये
डोर से बँधे।
ठंडा मौसम
राख ही राख, पर
तुम अलाव।
चन्द्रमा नहीं
रोशनी फिर भी है
दूर तारों की।
कैसे चलतीं
चींटियाँ कतार में
कौन सिखाता?
पाँवों में काँटे
यह फूल फिर भी
महकता है।
सूर्य-किरण
दुबली-पतली है
बहुत तेज।
तो भी रोशनी बाकी
इन दिलों में।
तारे सितारे
ठौर-ठौर पर ये
डोर से बँधे।
ठंडा मौसम
राख ही राख, पर
तुम अलाव।
चन्द्रमा नहीं
रोशनी फिर भी है
दूर तारों की।
कैसे चलतीं
चींटियाँ कतार में
कौन सिखाता?
पाँवों में काँटे
यह फूल फिर भी
महकता है।
सूर्य-किरण
दुबली-पतली है
बहुत तेज।
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