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फिर भी तू इंतज़ार कर शायद / फ़राज़

फिर उसी राहगुज़र [1]पर शायद[2]
हम कभी मिल सकें मगर शायद

जिनके हम मुंतज़िर[3]रहे उनको
मिल गए और हमसफ़र[4]शायद

जान पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर[5]कर ! शायद

अजनबीयत[6]की धुंध छँट जाए
चमक उठ्ठे तिरी नज़र शायद

ज़िन्दगी भर लहू रुलाएगी
यादे-याराने -बेख़बर[7]शायद

जो भी बिछड़े वो कब मिले हैं ‘फ़राज़’
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद

शब्दार्थ
1 मार्ग 2 कदाचित 3 प्रतीक्षारत 4 सह-यात्री 5 मनन 6 पराएपन 7बेख़बर मित्रों की याद

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