अरुण कुमार प्रसाद
उड़ी चिड़िया
वृक्ष कहीं न मिला
गिरी चिड़िया।
नदी मचली
आँसू से जब भरी
सागर चली।
भींगा कलम
रौशनाई से नहीं
आँसू से मेरे।
हाथ की रेखा
कुदाल पर घिसी
हो टेढ़ी-मेढ़ी।
अमीरी गर्व।
काश! गौरव होता।
सौरभ होता।
कूट की नीति
मानवता से तुली
झूठ निकली।
वृक्ष कहीं न मिला
गिरी चिड़िया।
नदी मचली
आँसू से जब भरी
सागर चली।
भींगा कलम
रौशनाई से नहीं
आँसू से मेरे।
हाथ की रेखा
कुदाल पर घिसी
हो टेढ़ी-मेढ़ी।
अमीरी गर्व।
काश! गौरव होता।
सौरभ होता।
कूट की नीति
मानवता से तुली
झूठ निकली।
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