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पूर्णिमा वर्मन

अबकी साल
वसंत के सपने
तुम ही तुम

कितनी बाट
तके मन फागुन
है गुमसुम

नैनों तलक
फहरती सरसों
मन चंदन

ढोल मंजीर
धनकती धरती
चंग मृदंग

टेसू चूनर
अरहर पायल
वन दुल्हन

होली आंगन
मन घन सावन
साजन बिन

बंदनवार
बंधे घर बाहर
बड़ा सुदिन

बिसरें बैर
मनाएं जनमत
प्रीत कठिन

केसर गंध
उड़े वन उपवन
मस्त पवन

पागल भौंरा
भटके दर दर
बना मलंग

डाल लचीली
सुबह चमाचम
खिले कदंब


छप्पन भोग
अठारह नखरे
गया हेमंत

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