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अश्विन गांधी

एक

हम पंछी हैं
खुला आकाश घर
मुक्त विहारी

दो

जो भी कहा
मुक्त कहा दिल से
न बाँधो हमें

तीन

बदलते हैं
दिवस रात साथ
और इनसान?

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