1. योग-संयोग
मुझे-
इतिहास ने धकेलकर
मंच पर खड़ा कर दिया है,
मेरा कोई इरादा नहीं था।
कुछ भी नहीं था मेरे पास,
मेरे हाथ में न कोई हथियार था,
न देह पर कवच,
बचने की कोई भी सूरत नहीं थी।
एक मामूली आदमी की तरह
चक्रव्यूह में फंसकर--
मैंने प्रहार नहीं किया,
सिर्फ़ चोटें सहीं,
लेकिन हँसकर !
अब मेरे कोमल व्यक्तित्व को
प्रहारों ने कड़ा कर दिया है।
एक बौने-से बुत की तरह
मैंने दुनिया को देखा
तो मन ललचाया !
क्योंकि मैं अकेला था,
लोग-बाग बहुत फ़ासले पर खड़े थे,
निकट लाया,
मुझे क्या पता था--
आज दुनिया कहाँ है !
मैंने तो यों ही उत्सुकतावश
मौन को कुरेदा था,
लोगों ने तालियाँ बजाकर
एक छोटी-सी घटना को बड़ा कर दिया है ।
मैं खुद चकित हूँ,
मुझे कब गाना आता था ?
कविता का प्रचलित मुहावरा अपरिचित था,
मैं सूनी गलियों में
बच्चों के लिए एक झुनझुना बजाता था;
किसी ने पसंद किया स्वर,
किसी ने लगन को सराहा,
मुझसे नहीं पूछा,
मैंने नहीं चाहा,
इतिहास ने मुझे धकेलकर,
मंच पर खड़ा कर दिया है,
मेरा कोई इरादा नहीं था।
इतिहास ने धकेलकर
मंच पर खड़ा कर दिया है,
मेरा कोई इरादा नहीं था।
कुछ भी नहीं था मेरे पास,
मेरे हाथ में न कोई हथियार था,
न देह पर कवच,
बचने की कोई भी सूरत नहीं थी।
एक मामूली आदमी की तरह
चक्रव्यूह में फंसकर--
मैंने प्रहार नहीं किया,
सिर्फ़ चोटें सहीं,
लेकिन हँसकर !
अब मेरे कोमल व्यक्तित्व को
प्रहारों ने कड़ा कर दिया है।
एक बौने-से बुत की तरह
मैंने दुनिया को देखा
तो मन ललचाया !
क्योंकि मैं अकेला था,
लोग-बाग बहुत फ़ासले पर खड़े थे,
निकट लाया,
मुझे क्या पता था--
आज दुनिया कहाँ है !
मैंने तो यों ही उत्सुकतावश
मौन को कुरेदा था,
लोगों ने तालियाँ बजाकर
एक छोटी-सी घटना को बड़ा कर दिया है ।
मैं खुद चकित हूँ,
मुझे कब गाना आता था ?
कविता का प्रचलित मुहावरा अपरिचित था,
मैं सूनी गलियों में
बच्चों के लिए एक झुनझुना बजाता था;
किसी ने पसंद किया स्वर,
किसी ने लगन को सराहा,
मुझसे नहीं पूछा,
मैंने नहीं चाहा,
इतिहास ने मुझे धकेलकर,
मंच पर खड़ा कर दिया है,
मेरा कोई इरादा नहीं था।
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